Thursday, May 19, 2022

क्युराइल द्वीप विवाद (समीक्षा)

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हाल ही में, जापान ने अपनी ‘कूटनीतिक ब्लूबुक’ के नए संस्करण में क्यूराइल द्वीप समूह को रूस के ‘अवैध कब्जे’ के तहत वर्णित किया है। लगभग दो दशकों में यह पहली बार है जब जापान ने क्यूराइल द्वीप समूह विवाद का वर्णन करने के लिये इस वाक्यांश का उपयोग किया है। 


क्यूराइल द्वीप समूह :

रूस के साखालिन ओब्लास्त (प्रान्त) में स्थित एक ज्वालामुखीय द्वीपसमूह है। यह जापान के होक्काइदो द्वीप से रूस के कमचटका प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर तक लगभग 1300 किमी (810 मील) तक फैला है। कुरील द्वीपों की पूर्वी तरफ़ उत्तरी प्रशांत महासागर और पश्चिमी तरफ़ ओख़ोत्स्क सागर है। इस समूह में 56 द्वीप और कई अन्य छोटी समुद्र की सतह से ऊपर उठने वाली पत्थर की चट्टानें हैं।

  •  ये चार द्वीपों का एक समूह है जिस पर रूस और जापान दोनों देश अपनी संप्रभुता का दावा करते हैं।जापान अभी भी कुरील के चार सब से दक्षिणी द्वीपों को अपना क्षेत्र बताता है। ये चार कुनाशीर, इतुरूप, शिकोतान और हबोमाए हैं। इनमें से हबोमाए वास्तव में केवल चट्टानों का एक समूह है। रूस जापान की इन मांगों को ग़लत बताता है और इन द्वीपों को अपना हिस्सा बताता है।

  • हालाँकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ये द्वीप रूसी नियंत्रण में हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में सोवियत संघ ने इन द्वीपों पर कब्जा कर लिया और वर्ष 1949 तक जापानी निवासियों को निष्कासित कर दिया था। जबकि टोक्यो का दावा है कि 19वीं सदी के प्रारंभ से ही ये द्वीप जापान का हिस्सा रहे हैं।



कारण :

  • जापान इन द्वीपों पर अपनी संप्रभुता की पुष्टि ‘शिमोडा संधि’ (1855), क्यूराइल- सखालिन की अदला-बदली के लिये ‘सेंट पीटर्सबर्ग की संधि’ (1875) और 1904-05 का रूस-जापान युद्ध के बाद हुई ‘पोर्ट्समाउथ संधि’ (1905) के द्वारा करता है। 

  • वहीं दूसरी ओर, रूस याल्टा समझौते (1945) और पॉट्सडैम घोषणा (1945) को अपनी संप्रभुता के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करता है। रूस का तर्क है कि वर्ष 1951 की सैन फ्रांसिस्को संधि के तहत जापान ने द्वीपों पर रूसी संप्रभुता को स्वीकार किया था। इस संधि के अनुच्छेद 2 के तहत जापान ने क्यूराइल द्वीप समूह के सभी अधिकार, शीर्षक और दावे को त्याग दिया था।

  • हालाँकि, जापान का तर्क है कि सैन फ्रांसिस्को संधि का उपयोग यहाँ नहीं किया जा सकता क्योंकि सोवियत संघ ने कभी भी शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये। जापान ने यह मानने से भी इनकार कर दिया कि चार विवादित द्वीप वास्तव में क्यूराइल शृंखला का हिस्सा थे।

  • वस्तुतः जापान और रूस तकनीकी रूप से अभी भी युद्धरत हैं क्योंकि उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। वर्ष 1956 में, जापानी प्रधानमंत्री की सोवियत संघ की यात्रा के दौरान यह सुझाव दिया गया था कि शांति संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद चार में से दो द्वीप जापान को वापस कर दिये जाएँगे। 

  • हालाँकि लगातार मतभेदों के कारण शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं हुए। वहीं दोनों देशों ने जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर किये, जिसने दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को बहाल किया। 

  • कालांतर में सोवियत संघ ने अपनी स्थिति सख्त कर ली, यहाँ तक कि उसने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसका जापान के साथ क्षेत्रीय विवाद मौजूद है। वर्ष 1991 में मिखाइल गोर्बाचेव की जापान यात्रा के दौरान सोवियत संघ ने माना कि द्वीप एक क्षेत्रीय विवाद का विषय थे।



विवाद क्यों :

  • जापान संभवतः रूस-चीन गठबंधन से भयभीत है क्योंकि जापान के दोनों देशों के साथ ही क्षेत्रीय विवाद तथा एक असहज इतिहास रहा है।

  • जापान के पास वर्तमान समय में रूस को अलग-थलग करने और उसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के आदतन अपराधी के रूप में चित्रित करने का यह एक अच्छा अवसर है।



द्वीपीय विवाद सुलझाने के प्रयास :

  • शिमोडा की संधि (1855): वर्ष 1855 में जापान और रूस ने शिमोडा की संधि का समापन किया, जिसने जापान को चार सबसे दक्षिणी द्वीपों और शेष शृंखला का नियंत्रण रूस को दिया।
  • सेंट पीटर्सबर्ग की संधि (1875): वर्ष 1875 में दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित सेंट पीटर्सबर्ग की संधि में रूस ने सखालिन द्वीप के निर्विरोध नियंत्रण के बदले कुरील का कब्ज़ा जापान को सौंप दिया।हालाँकि द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में सोवियत संघ द्वारा इन द्वीपों को फिर से जब्त कर लिया गया था।
  • याल्टा समझौता (1945): वर्ष 1945 में याल्टा समझौतों (वर्ष 1951 में जापान के साथ औपचारिक रूप से शांति संधि) के हिस्से के रूप में द्वीपों को सोवियत संघ को सौंप दिया गया था और जापानी आबादी को स्वदेश लाया गया तथा सोवियत संघ द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  • सैन फ्रांसिस्को शांति संधि (1951): वर्ष 1951 में मित्र राष्ट्रों और जापान के बीच हस्ताक्षरित सैन फ्रांसिस्को शांति संधि में कहा गया है कि जापान को "कुरील द्वीपों पर सभी अधिकार एवं दावा" छोड़ देना चाहिये, लेकिन यह उन पर सोवियत संघ की संप्रभुता को भी मान्यता नहीं देता है।द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल मुख्य राष्ट्र:धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान),मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा चीन)।
  • जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा (1956): द्वीपों पर विवाद ने द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त करने के लिये एक शांति संधि के समापन को रोक दिया है।वर्ष 1956 में जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा द्वारा जापान और रूस के बीच राजनयिक संबंध बहाल किये गए।उस समय रूस ने जापान के निकटतम दो द्वीपों को देने की पेशकश की लेकिन जापान ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि दोनों द्वीपों में विचारधीन भूमि का केवल 7% ही हिस्सा था।
  • वर्ष 1991 के बाद से विवाद को सुलझाने और शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के कई प्रयास हुए हैं। सबसे हालिया प्रयास प्रधानमंत्री शिंजो आबे के कार्यकाल के दौरान किया गया जब विवादित द्वीपों के संयुक्त आर्थिक विकास पर चर्चा की गई।
  • वास्तव में, दोनों देश वर्ष 1956 के जापान-सोवियत संयुक्त घोषणा के आधार पर द्विपक्षीय वार्ता करने पर सहमत हुए थे। इस घोषणा के अनुसार शांति संधि के बाद रूस, जापान को दो द्वीप शिकोटन और हाबोमाई द्वीप वापस देने के लिये तैयार था। 
  • रूस के साथ संबंधों में सुधार करने के जापान के प्रयास ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और रूस को अपना निर्यातक बनाने और विदेशी निवेश लाने की आवश्यकता से प्रेरित थे, लेकिन दोनों पक्षों की राष्ट्रवादी भावनाओं ने विवाद के समाधान को रोक दिया।


क्यूराइल द्वीप समूह पर जापान की नीति में बदलाव रूस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। साथ ही यह इसके दो पड़ोसियों चीन और रूस के एक साथ आने की संभावना को और आगे बढ़ाएगा।

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