Thursday, June 30, 2022

एरोपॉनिक तकनीक से कृषि (समीक्षा)

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हाल ही में, विषाणु रोग से मुक्त आलू बीज उत्पादन के लिये एरोपॉनिक पद्धति के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्वालियर में एक आलू बीज उत्पादन केंद्र स्थापित किये जाने की योजना है। इस तकनीक का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् और केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला स्थित प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। 


एरोपॉनिक पद्धति

  • फसलों को रोगों एवं कीटों से बचाने तथा बढ़ते प्रदूषण एवं सिमटती कृषि भूमि की चुनौतियों से निपटने के लिये कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है। इन्हीं अभिनव कृषि तकनीकों में एरोपॉनिक पद्धति प्रमुखता से शामिल है।यह पद्धति मिट्टी के उपयोग के बिना हवा या पानी की सूक्ष्म बूंदों (Mist) के वातावरण में पौधों को उगाने की प्रक्रिया है। 
  • इस पद्धति में पोषक तत्त्वों का छिड़काव मिस्टिंग के रूप में जड़ों में किया जाता है।
  • इस पद्धति में खेतों की जुताई, गुड़ाई और निराई जैसी परंपरागत प्रक्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इस विधि में पौधे का ऊपरी भाग खुली हवा व प्रकाश के संपर्क में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकंद प्राप्त किये जाते हैं। इस पद्धति में मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है, इस प्रकार मिट्टी से जुड़े रोग भी फसलों में प्रसारित नहीं होते हैं।


अन्य पद्धति से भिन्नता

  • यह पद्धति पारंपरिक रूप से प्रचलित हाइड्रोपोनिक्स, एक्वापॉनिक्स और इन-विट्रो (प्लांट टिशू कल्चर) से भिन्न है। 
  • विदित है कि हाइड्रोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक खनिजों की आपूर्ति के लिये माध्यम के रूप में तरल पोषक तत्त्व सॉल्यूशन का उपयोग होता है।एक्वापॉनिक्स में भी पानी और मछली के कचरे का उपयोग होता है। जबकि, एरोपॉनिक्स पद्धति में पौधों की वृद्धि के लिये किसी बाह्य तत्त्व का प्रयोग नहीं किया जाता है।

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